|
हाज़िर है आरएमआइएम पुरस्कारों का छठा संस्करण यानी 2011 के हिंदी फ़िल्म संगीत का लेखा-जोखा.
पहले हिसाब किताब. पिछले साल ले-देकर कुल 111 हिंदी फ़िल्में रिलीज़ हुईं. और इनमें से चुनकर आप लोगों ने 135 गाने नामांकित किए (और आपने नहीं किए तो ग़लत बात है). इनमें से पूरे 70 गाने चुने गए हमारे ज्यूरी मेम्बरान के लिए. उनका काम था इन गानों को ढंग से सुनना और इन्हें मूल्यांकित करना और नंबर देना. इस साल संगीत की विविधता का जायजा आप इस बात से लगाइये कि ये 70 गाने 34 अलग-अलग फ़िल्मों में से थे.
साल के मुख्य चलनों पर नज़र डालें तो सूफ़ी और क़व्वाली-नुमा गानों का दौर जो 2010 में चरम पर था, 2011 में भी जारी रहा. अंग्रेज़ी बोलों का जबरदस्ती घुसाव भी जारी रहा और हमारे कई ज्यूरी सदस्यों को इस साल भी परेशान करता रहा. एक नई चीज़ रही गालियों, अपशब्दों का गानों में इस्तेमाल, कभी सहज तो कभी लुका-छुपा. पर इस साल ने इनसे हटकर भी काफ़ी कुछ दिया. नए कलाकारों का आना तेज़ रफ़्तार से चलता रहा और इसने फ़िल्म संगीत को विविधता और ताज़गी दी.
दो नाम जो न केवल संगीत परिदृष्य पर छाये रहे बल्कि जिन्होंने इस साल के साउंड को भी परिभाषित किया वे हैं - मोहित चौहान और श्रेया घोषाल. श्रेया तो पहले भी साल की गायिका रह चुकी हैं पर मोहित ने अपनी स्टाइलिश लहजे वाली गायकी को नायक की आवाज़ बनाकर पहली बार साल के गायक का ख़िताब जीता. जहाँ कई नई आवाजें दाखिल हुईं, वहीं कुछ पुराने स्वर भी सुनाई दिए. वाडकर व हरिहरन ने अपने इकलौते गानों में बुलंदी बनाए रखी. कभी कभी गाने वालों मे बप्पी लहिरी ने धूम से और अमिताभ बच्चन ने संजीदगी से अपनी हाज़िरी लगाई. पिछले साल के गायक-गायिका रहे राहत और सुनिधि कम-कम दिखे. वहीं पिछले दशक की स्टार गायक-तिकड़ी में से शंकर और सुखविंदर तो बिल्कुल और सोनू लगभग नदारद रहे. एक चलन जो जारी रहा वो था संगीतकारों द्वारा शास्त्रीय और लोक गायकों का इस्तेमाल. छन्नूलाल मिश्र, वडाली बंधु, राशिद ख़ान, और मामे ख़ान इस साल की सूची में उपस्थित रहे.
पुराने संगीतकारों में रहमान और विशाल भारद्वाज अपने इक्कों की बदौलत शीर्ष पर रहे. रहमान अपने इकलौते पर असरदार और भरे-पूरे रॉकस्टार की बदौलत हमारे साल के संगीतकार रहे. एक और इक्का फेंका एक नए संगीतकार कृष्णा ने. अपने पहले ही एल्बम तनु वेड्स मनु से उन्होंने ज्यूरी को वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया. पर सिर्फ़ वही नहीं, इस साल कई सारे नए संगीतकारों ने आहिस्ता लेकिन सुनाई देने वाली दस्तक दी. अभिषेक राय, सचिन-जिगर, अजय-अतुल, मल्हार, गौरव दगाँवकर कुछ ऐसे प्रतिभाशाली नए नाम रहे जो उम्मीद है आगे भी सुनाई देंगे. सितारवादक उस्ताद निशात ख़ान ने अपनी पहली फ़िल्म ये साली ज़िंदगी से फ़िल्म संगीत माध्यम पर अपनी पकड़ का जायजा दिया. वहीं गैर-फ़िल्मी संगीत की दुनिया से आए रघु दीक्षित ने अपनी ताज़ा धुनों और अनूठे संयोजन से ध्यान खींचा. राम संपत ने देल्ही बेली में एक अलग-सा माहौल रचा जिसे तालियाँ भी मिलीं और गालियाँ भी. अमित त्रिवेदी असरदार और अलग धुनें देते रहे. सलीम-सुलेमान हाज़िर रहे पर कुछ ख़ास नहीं कर पाए. पाकिस्तान से आतिफ़ असलम और सज्जाद अली फ़िल्म बोल के जरिए, परिचित से पॉप-नुमा अंदाज़ में दिखे और कमोबेश पसंद किए गए. विशाल-शेखर और प्रीतम ने अपनी लोकप्रियता कायम रखी. एक अच्छी बात और ये हुई कि शंकर-एहसान-लॉय अपनी एकरसता से बाहर आए और कुछ यादगार धुनें दे गए. कुल मिलाकर पुराने और नए संगीतकारों का अच्छा-ख़ासा मेला रहा. ऐसा जैसा अरसे से नहीं दिखा.
इरशाद कामिल ने इस साल के बगावती गायक-नायक को उसके अल्फ़ाज़ दिए. सिला ये कि रॉकस्टार के ऑडियो एल्बम से उनका नाम गायब मिला. बहरहाल, वे हमारे इस साल के गीतकार रहे. उनके बोलों मे ईमानदारी, साफ़गोई और नयापन लगातार जारी रहा और लोक परंपरा से अपने गीतों को समृद्ध करने में उन्होंने संकोच नहीं किया. नए गीतकार राजशेखर ने अपनी पहली ही फ़िल्म में अपनी विविधता और शैली से ख़ासा प्रभावित किया. गुलज़ार की कलम जादू परोसती रही और ‘लिल्लाह’ बोलने पर मजबूर करती रही. जावेद अख़्तर ने अपना ठीक-ठाक लिखना जारी रखा, हालाँकि अब इस वरिष्ठता में उनसे उम्मीद बढ़ जाती है. अमिताभ भट्टाचार्य अपनी प्रतिभा से अक्सर चौंकाते और कभी-कभी भौंचक्का करते पाए गए. स्वानंद किरकिरे ने भी कुछ ख़ूबसूरत गीत लिखे. मुद्दआ ये कि नए प्रतिभाशाली गीत लेखकों ने पिछले कुछ सालों से चल रहे गीतकारी के इस बेहतर दौर को मुसलसल रखने में वरिष्ठ गीतकारों का जम के साथ दिया.
ऐसे एल्बम को जिसने श्रेष्ठता के हमारे पैमानों को पार कर लिया हो, हम सतीश कालरा सम्मान देते हैं. यह सम्मान सर्वकालिक श्रेष्ठता के लिए है. किसी साल ये एक से ज़्यादा एल्बमों को मिल जाता है तो कभी किसी को नहीं. इस साल हमारी ज्यूरी ने रॉकस्टार को इस योग्य पाया है और यूँ यह एल्बम हमारे हॉल ऑफ़ एक्सिलेंस में दाखिल होता है.
तो ये थी साल के संगीत पर एक अधकचरी, तुरत-फ़ुरत नज़र. अब आप आराम से, गंभीरता से, और संपूर्णता से पुरस्कार परिणामों को देखने के लिए परिणाम या Results पर जाएँ. जिन नामांकित गानों को अंतिम सूची में जगह नहीं मिली, उन्हें आप अन्य नामांकित गीत वाली सूची में देख सकते हैं. वहीं ज्यूरी सदस्यों की टिप्पणियाँ भी देखी जा सकती हैं जिनमें आप पाएँगे कि 16 लोगों का किसी गाने पर एकमत हो पाना कितना दुर्लभ होता है.
एक ज़रूरी बात ये कि अपनी राय भी बताएँ. हर गीत के पन्ने पर आप उसके बारे में अपनी बात कह सकते हैं. ज्यूरी मेम्बरान कहाँ सही, कहाँ ग़लत हैं, हमें और उन्हें बताएँ. साथ ही अपने दोस्तों और दुश्मनों को साल के इन चुनिंदा गानों का पता दें और उनका जीना आसान (या दूभर) करें.
आख़िर में, शुक्रिया. उनका जिन्होंने नामांकन भेजे. और उनका जिन्होंने ज्यूरी के तौर पर काना-पच्ची और माथा-पच्ची करना मंजूर किया. और आपका.
अगले साल तक...
विनय