क़रीब दो महीनों की अक्सर सुरीली और कभी-कभार पेचीदा मशक़्क़त के बाद पेश हैं 12वें वार्षिक आरएमआइएम पुरस्कार के नतीजे.
सबसे पहले कुछ आँकड़े:
कुल मिलाकर किसी विशेष चलन की अनुपस्थिति रही, जो शायद इस बात का संकेत है कि संगीत में विविधता रही. ये इससे भी दिखता है कि अंतिम सूची में कुल फ़िल्मों और कलाकारों की संख्या सामान्य से अधिक रही. नए नाम हमेशा दिखते हैं पर ख़ास यह रहा कि कई नए नाम हमारे पहले पन्ने पर पहुँचे. ऐसा शायद पहली बार हुआ कि पहले दो गानों से जुड़े सभी कलाकार नए हैं. एक ट्रेंड जो इन पुरस्कारों से सीधा ज़ाहिर नहीं होता वह ये कि पुराने गानों के कवर और रीमिक्स के फ़िल्मों में इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई - हमारे 'अन्य नामांकित गीत' भाग में ऐसे कुछ गीत देखे जा सकते हैं. बहरहाल, अगर कोई एक बात पकड़नी हो तो ये कहा जा सकता है कि 2017 गायिकाओं का साल रहा.
साल के चलनों और मूड का एक जायज़ा इस टैग-बादल से लिया जा सकता है:
इरशाद कामिल दूसरी बार (पिछली बार 2011 में) हमारे साल के गीतकार बने. जब हैरी मॆट सेजल के लिए उनके लिखे गानों की फ़लसफ़ाना कैफ़ियत हमारी ज्यूरी को काफ़ी भाई. गुलज़ार की जादूगरी जारी रही और उनका गाना ये इश्क़ है इस साल के अच्छे लिखे गानों में सबसे ऊपर रहा (आख़िर "बेख़ुद-सा रहता है, ये कैसा सूफ़ी है / जागे तो तबरेज़ी, बोले तो रूमी है" को कोई क्या बेहतर करे). अमिताभ भट्टाचार्य ने भी पूरी हाज़िरी लगाई. जग्गा जासूस में उनका काम सराहा गया. जावेद अख़्तर शायद पहली बार बिल्कुल नदारद रहे. कौसर मुनीर के लिखे कई गाने शामिल रहे और ज्यूरी को पसंद आए. नीलेश मिश्रा और ग़ालिब असद भोपाली के इकलौते गाने भी पसंद किए गए. मौजूदा गीतकारी की हालत पर ज्यूरी मेम्बरान आम तौर पर ख़ुश दिखाई दिए.
संगीतकारों में ये साल प्रीतम का रहा. प्रीतम अपनी साउंड के बारे में ख़ास सतर्क रहते हैं और लगभग हर साल उसमें एक नयापन सुनाई देता है. उनकी इस साल की दोनों धमाकेदार उपस्थितियों जब हैरी मॆट सेजल और जग्गा जासूस में भी यह साफ़ देखा जा सकता है. रहमान का असर ज़्यादा नहीं रहा पर ओके जानू में उनका काम पसंद किया गया. नए संगीतकार शांतनु घटक ने एक ही गाना दिया (जिसे उन्होंने लिखा भी) और वो हमारे ज्यूरी की पहली पसंद और साल का गाना बना. इसी तरह गौरव डगाँवकर का इकलौता बर्फ़ानी भी प्रभावी रहा और दूसरे नम्बर पर रहा. सचिन-जिगर और तनिष्क-वायु भी सूची में काफ़ी नज़र आए. पिछले सालों की तरह ही कई नये नाम भी दिखे.
गायकी में इस बार एक ख़ास बात यह हुई कि साल के श्रेष्ठ एकल गाये गीतों में शुरू के 9 में सिर्फ़ एक पुरुष गायक के खाते में गया. लगता है कि श्रेया और सुनिधि की लगभग अनुपस्थिति का फ़ायदा नई गायिकाओं और संगीतकारों ने बख़ूबी लिया है. महिला गायकी में विविधता के नजरिये से ये दौर अनूठा है. कई जूरी सदस्यों का कहना है कि काश ऐसा पुरुष गायकी में भी हो. अरिजित को प्यार और लताड़ दोनों मिले, हालाँकि प्यार साल-दर-साल कम होता जा रहा है. बहरहाल वे पूरी सूची में छाये रहे और फिर हमारे साल के गायक बने.
हमारी साल की गायिका बनीं शाशा तिरुपति. उनके गाये सुन भँवरा और कान्हा जूरी को बेहद पसंद आए. सबसे अच्छे गाए एकल गानों में रोंकिनी गुप्ता के रफ़ू, सुन भँवरा और अरुणिमा भट्टाचार्य के बर्फ़ानी को लगभग बराबर अंक मिले और हमने उन्हें साथ-साथ शीर्ष पर रखा है. नंदिनी श्रीकर, जोनिता गाँधी और मोनाली ठाकुर पसंदीदा बनी रहीं. नई आवाज़ों में मेघना मिश्रा और निकिता गाँधी ने भी काफ़ी प्रभावित किया. सोनू निगम दिखे, पसंद भी किए गए - 9 शीर्ष एकल गानों में अकेले पुरुष गायक वही हैं. दिखने को श्रेया, सुनिधि, और सुखविंदर भी दिखे (पर शंकर नहीं).
इस साल जो फ़िल्म अपनी सर्वकालिक श्रेष्ठता के बूते हमारे हॉल ऑफ एक्सिलेंस में शामिल होती है वह है प्रीतम और इरशाद कामिल की 'टूअर ड फ़ोर्स' जब हैरी मॆट सेजल, जिसके 8 गाने हमारी अंतिम-सूची में हैं.आख़िर में, ज्यूरी को सलाम! इन भले लोगों को निस्वार्थ, परमार्थ सेवा के लिए शुक्रिया के सिवा कुछ नहीं मिलता, पर फिर भी ये वक़्त पर अपना काम पूरा कर देते हैं. आप सब का भी शुक्रिया जिन्होंने नामांकन भेजे, बात फैलाई, और हम पर नज़र रखी.
पुरस्कार हमेशा की तरह हिंदी (नागरी) और अंग्रेज़ी (English) दोनों में देखे जा सकते हैं.
सुनते रहिए...
विनय