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संगीत की इस सालाना समीक्षा के बाद हर साल कुछ बातें बाक़ी बातों से ज़्यादा साफ़ दिखती हैं. इस साल भी दिखीं.
पहली तो ये कि पुराने भुला दिए गए कलाकारों से पूरी तरह नाउम्मीद होने की ज़रूरत नहीं है. इसका प्रमाण दिया अनु मलिक ने. आज से पहले वे इस पुरस्कार के 10-साला इतिहास में शायद कभी दिखे भी नहीं हैं. पर उनकी वापसी का गीत इस साल पुरस्कार के पहले पन्ने पर हर श्रेणी में ऊपर है.
दूसरी ये कि नये लोगों से न केवल उम्मीद रखी जानी चाहिए बल्कि उनसे बेहतर काम की तलब करना भी जायज़ है. इसकी तसल्ली मिलती है वरुण ग्रोवर की कलम से. वरुण के मसान और दम लगा के हइशा के गीतों में उनकी भाषिक समझ दिखती है और एक खरी, औघड़, सौंधी आवाज़ सुनाई देती है. उनके गीत इस साल ज्यूरी के मनों में छाये रहे हैं. साल के तीन सबसे बेहतरीन लिखे गीतों पर उनका नाम है.
और तीसरी, शायद इन दोनों के बीच की, बात ये कि कभी-कभी स्थापित कलाकार अपनी विधा बदलकर ज़्यादा प्रभावी होते हैं. संजय लीला भंसाली के निर्देशन पर आप जो कह लें, संगीतकारी के अपने इस प्रयास में उन्होंने ख़ासा प्रभावित किया है. उनकी बाजीराव मस्तानी हमारे सर्वकालिक श्रेष्ठ संगीत वाली फ़िल्मों की श्रंखला में शामिल हो गई है. मुज़फ़्फ़र अली की संगीतबद्ध जाँनिसार के गाने भी ज्यूरी ने ख़ासे पसंद किए हैं.
इन कलाकारों के सरप्राइज़ प्रदर्शन की चकाचौंध में अमित त्रिवेदी और अमिताभ भट्टाचार्य की जोड़ी का काम हो सकता है दिखे कुछ कम, पर उसका ख़म पूरा बरक़रार है. यह इस दशक की शायद सबसे सशक्त गीतकार-संगीतकार जोड़ी है और लगातार आला दर्ज़े के गाने बनाती जा रही है. उनकी बॉम्बे वेल्वेट इस साल के एल्बम की संयुक्त विजेता है और सर्वकालिक श्रेष्ठ एल्बमों के हॉल में भी दाखिला लेती है.
गायकों में यूँ तो श्रेया छाई रही हैं और अरिजित ने भी पिछले साल की सफलता दोहराई है, पर गायकों की एक पूरी नई जमात तैयार दिखाई देती है. मोनाली ठाकुर ने जहाँ पहली पायदान और हमारी ज्यूरी का दिल जीता है, वहीं नीति मोहन ने कई गानों में अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया है.
बाक़ी कलाकारों में पुराने से ज़्यादा नये लोग छाये रहे हैं. जिनसे उम्मीद ज़्यादा रहती है, उनमें से रहमान शामिल तो हैं पर जोरों-शोरों से नहीं. गुलज़ार, जावेद अख़्तर, और विशाल के बारे में भी यही कहा जा सकता है. पिछले दशक के स्टार गायक सोनू, शंकर, सुनिधि, सुखविंदर भी दिखे हैं और कमोबेश पसंद किए गए हैं. और दिखने को उससे पिछले दशक के सानु, साधना और अलका याग्निक भी हैं, पर उनकी मौजूदगी अतिथि अदाकारों वाली लगती है.
नए कलाकारों में अनुपम रॉय हैं जो गीत, संगीत, गायकी तीनों विधाओं में दाखिला रखते दिखते हैं. कुछ और नई या अपेक्षाकृत नई आवाजें जिन्होंने अपना प्रभाव छोड़ा है उनमें शेफ़ाली अल्वारेस, पायल देव, श्रेयस पुराणिक, ज्योति नूराँ, वैशाली माडे, स्वाति शर्मा, हर्षदीप कौर शामिल हैं. राजशेखर और कृष्णा सोलो ने अपना कोना बचाए रखा है.
हर साल पुरस्कार सूची में नए नाम दिखते हैं पर इस साल उनका हिस्सा ख़ासा ज़्यादा है और कुछ-कुछ एक पूरे दौर के बदलाव का लहज़ा लिए है. कुछ इस अंदाज़ में कि,
"फ़ितरत नई, ज़माना नया, ज़िंदगी नई
कोहना ख़ुदा को पूजते जाने में कुछ नहीं"
टैग क्लाउड उर्फ़ विशेषण बादल
हमारी ज्यूरी हर गीत को कुछ विशेषणों से भी नवाज़ती है. उससे बनता है यह टैग क्लाउड, जो पूरे साल के संगीत के मूड का एक स्नैपशॉट देता है:
हमारी इस साल की 19-सदस्यीय ज्यूरी का जितना शुक्रिया करूँ कम है. सिर्फ़ इसलिए नहीं कि मैंने उनसे मुफ़्त का काम लिया है. बल्कि इसलिए भी कि बुखार-जुकाम, ज़्यादा ट्रैफ़िक, धीमे नेट कनेक्शन जैसी दिक्कतों के बाद भी उन्होंने काम को बख़ूबी अंजाम दिया है. ज्यूरी के कमेंट हमेशा की तरह इस बार भी दिलचस्प हैं और कई नजरियों को एक साथ देखने का मौका देते हैं. लगभग हर गाने में एक कमेंट तो आपको शायद मिलेगा ही जिससे आप बिल्कुल सहमत नहीं होंगे. अपनी बात उन्हें बताइए. और सहमति हो तो उसे भी ज़ाहिर कीजिए.
इस बार के कुछ आँकड़े ये रहे -
इस साल के संस्करण के साथ दस साल पूरे होते हैं इस पुरस्कार के. भरा-पूरा सा वक़्फ़ा है ये. परंपराएँ ठोस होने के लिए भी काफ़ी है और उन्हें ख़त्म करने के लिए भी मुनासिब. बहरहाल, एक पूरा राउण्ड फ़िगर शुक्रिया उन सभी को जो इस सुरीले सफ़र में हमराह रहे हैं.
सुनते रहिये...
विनय